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बंधुआ मजदूर का जीवन जीने को मजबूर शिक्षामित्र, चार वर्ष बाद भी कोई समाधान नहीं निकाल पाई प्रदेश सरकार

 लगभग 20 वर्षों पहले उज्ज्वल भविष्य के सपनों के साथ बेसिक शिक्षा विभाग में पदार्पण करने वाले शिक्षामित्र आज मानसिक और आर्थिक स्थिति में बंधुआ मजदूर का जीवन जीने को विवश हैं। सुप्रीम कोर्ट से समायोजन रद्द होने के उपरांत चार वर्ष बीतने वाले हैं, प्रदेश की लोकप्रिय सरकार के घोषणा पत्र में मात्र तीन माह में न्यायोचित समाधान करने वाली सरकार चार वर्ष बीतने पर भी कोई समाधान नहीं कर सकी।



सुचित मलिक जिलाध्यक्ष शिक्षामित्र- शिक्षक संघ ने बताया कि सैकड़ों बार शिक्षामित्रों द्वारा प्रदेश सरकार से अनुनय- विनय करके भविष्य सुरक्षित करने की मांग की, परंतु सरकार द्वारा प्रत्येक बार केवल एक ही रटा रटाया जबाब 3500 से 10000 मानदेय करने का जुमला सुना दिया जाता है। एक ओर शिक्षामित्रो के जितने भी संगठन और टीमें रहीं वह भी चार सालों में एक मंच से एक सही मांग पत्र भी सरकार को नहीं दे सके और न ही अपनी एकजुटता प्रदर्शित करने मे कोई कदम उठा सके। आज के परिदृष्य में शिक्षा मित्रों के पास स्वयं भू नेताओं की भीड़ है परंतु कोई भी ऐसा नहीं लग रहा जो शिक्षामित्रों के मान-सम्मान की लड़ाई लड़ने मे सक्षम हो।

अपनी एकजुटता प्रदर्शित करने का माध्यम केवल धरना-प्रदर्शन ही नहीं होता अपितु सम्मेलनों के माध्यम से भी एकजुटता प्रदर्शित की जा सकती है। प्रदेश का प्रत्येक शिक्षामित्र आज आर्थिक, मानसिक रूप से टूट चुका है और हर वक्त यही सोचता रहता है कि कौन सुनेगा, किसको सुनाये अपनी जीवन की दास्तां।

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