इलाहाबाद : शीर्ष कोर्ट से जिन शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक पद पर समायोजन रद हो चुका उन्हें हाईकोर्ट से भी राहत नहीं मिली है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शिक्षामित्रों को प्रशिक्षु शिक्षक के रूप में ज्वाइन करने की अनुमति की मांग में दाखिल याचिका पर हस्तक्षेप से इन्कार कर दिया है।
कोर्ट ने राज्य सरकार को 72825 सहायक अध्यापकों की भर्ती में खाली रह गए 6160 पदों को भरने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार निर्णय लेने की छूट दी है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 66655 सहायक अध्यापकों की नियुक्ति के बाद खाली बचे 6160 पदों को नया विज्ञापन जारी कर भर्ती करने का आदेश दिया है।1यह आदेश न्यायमूर्ति पीकेएस बघेल ने अरविंद कुमार व कई अन्य की याचिकाओं को खारिज करते हुए दिया है। मालूम हो कि राज्य सरकार ने 26 मई 1999 को मानदेय पर शिक्षामित्रों को प्राथमिक स्कूलों में पढ़ाने के लिए नियुक्ति करने का फैसला लिया था। 1ग्राम स्तरीय कमेटी की संस्तुति पर जिला स्तरीय कमेटी के अनुमोदन से शिक्षामित्रों की नियुक्ति की गई। यह नियुक्तियां सर्व शिक्षा अभियान के तहत हुई थीं। एक जुलाई 2011 को संसद से पारित अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 लागू किया गया। राज्य सरकार ने 23 अगस्त 2010 की अधिसूचना जारी कर शिक्षामित्रों को दूरस्थ शिक्षा से प्रशिक्षण देने का फैसला लिया। याचीगण का कहना है कि उन्होंने दो वर्षीय डिप्लोमा किया और टीईटी भी उत्तीर्ण किया है, साथ ही प्रशिक्षु शिक्षक के रूप में चयनित हुए। 1इसी बीच राज्य सरकार (तत्कालीन सपा शासन) ने शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक पद पर समायोजित करने का निर्णय लिया। 19 जून 2013 को शिक्षामित्रों का समायोजन किया गया जिसे हाईकोर्ट ने रद कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर मुहर लगा दी। प्रशिक्षु शिक्षक पद पर चयनित याचियों ने समायोजन रद होने के बाद सहायक अध्यापक पद पर ज्वाइन करने की मांग के लिए हाईकोर्ट की शरण ली थी। जिस पर कोर्ट ने हस्तक्षेप से इन्कार कर दिया है।
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ख़बरें अब तक - 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती - Today's Headlines
कोर्ट ने राज्य सरकार को 72825 सहायक अध्यापकों की भर्ती में खाली रह गए 6160 पदों को भरने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार निर्णय लेने की छूट दी है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 66655 सहायक अध्यापकों की नियुक्ति के बाद खाली बचे 6160 पदों को नया विज्ञापन जारी कर भर्ती करने का आदेश दिया है।1यह आदेश न्यायमूर्ति पीकेएस बघेल ने अरविंद कुमार व कई अन्य की याचिकाओं को खारिज करते हुए दिया है। मालूम हो कि राज्य सरकार ने 26 मई 1999 को मानदेय पर शिक्षामित्रों को प्राथमिक स्कूलों में पढ़ाने के लिए नियुक्ति करने का फैसला लिया था। 1ग्राम स्तरीय कमेटी की संस्तुति पर जिला स्तरीय कमेटी के अनुमोदन से शिक्षामित्रों की नियुक्ति की गई। यह नियुक्तियां सर्व शिक्षा अभियान के तहत हुई थीं। एक जुलाई 2011 को संसद से पारित अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 लागू किया गया। राज्य सरकार ने 23 अगस्त 2010 की अधिसूचना जारी कर शिक्षामित्रों को दूरस्थ शिक्षा से प्रशिक्षण देने का फैसला लिया। याचीगण का कहना है कि उन्होंने दो वर्षीय डिप्लोमा किया और टीईटी भी उत्तीर्ण किया है, साथ ही प्रशिक्षु शिक्षक के रूप में चयनित हुए। 1इसी बीच राज्य सरकार (तत्कालीन सपा शासन) ने शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक पद पर समायोजित करने का निर्णय लिया। 19 जून 2013 को शिक्षामित्रों का समायोजन किया गया जिसे हाईकोर्ट ने रद कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर मुहर लगा दी। प्रशिक्षु शिक्षक पद पर चयनित याचियों ने समायोजन रद होने के बाद सहायक अध्यापक पद पर ज्वाइन करने की मांग के लिए हाईकोर्ट की शरण ली थी। जिस पर कोर्ट ने हस्तक्षेप से इन्कार कर दिया है।
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