UP: शिक्षामित्र क्यों हैं बरसों से परेशान,सरकारें क्यों हैं सुस्त?

यूपी के लखनऊ में बुधवार को निराश-हताश शिक्षामित्रों ने भारी विरोध प्रदर्शन किया. महिला शिक्षामित्रों ने सिर तक मुंडवा लिए. अब भारी विरोध को देखते हुए सीएम योगी आदित्यनाथ ने बुधवार देर रात एक कमेटी बनाने का ऐलान किया है.
इस कमेटी के अध्यक्ष होंगे डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा. पिछले कई सालों से अपने भविष्य को लेकर चिंतित यूपी के करीब 1 लाख 70 हजार शिक्षामित्रों को ये कमेटी क्या फायदा पहुंचाएगी, अभी कहा नहीं जा सकता.

    हमारे पास दूसरा कोई विकल्प ही नहीं बचा है. क्या करें, क्या न करें, कुछ समझ नहीं आता. इस सरकार ने चुनाव से पहले खूब उम्मीदें बांधी थीं. सब खत्म होता जा रहा है.
    प्रतिभा (बदला हुआ नाम), शिक्षामित्र

25 जुलाई, 2017 को ही निरस्त हुआ था समायोजन

25 जुलाई, 2017 को ही सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिभा जैसे प्रदेश के सभी शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द कर दिया था. उस वक्त तक शिक्षकों को हर महीने करीब 38 हजार की सैलरी मिल रही थी, जो फैसले के बाद घटकर महज 10 हजार रुपये हो गई. आप समझ सकते हैं कि वेतन में इतना बड़ा अंतर आने के बाद परिवार की स्थिति क्या होगी.
क्या है इनकी मांग?

शिक्षामित्र समान कार्य, समान वेतन की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि उनके समायोजन तक उन्हें शिक्षक के समान वेतन दिया जाए. शिक्षामित्र अध्यादेश लाकर समायोजन की मांग कर रहे हैं. मांग ये भी है कि जो शिक्षामित्र TET (टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट) पास कर चुके हैं, उन्हें बिना किसी लिखित परीक्षा के नियुक्ति मिले.
नियुक्ति के वक्त से ही अधर में हैं शिक्षामित्र

दरअसल, साल 2001 में यूपी में शिक्षामित्रों की नियुक्ति का आदेश आया था. इस पद के लिए किसी ट्रेनिंग की जरूरत नहीं हुआ करती थी और न्यूनतम योग्यता थी 12वीं पास. 11 महीनों के कॉन्ट्रेक्ट पर शिक्षामित्रों को रखा जाता था, हर महीने 1850 रुपये का वेतन मिलता था. इन्हीं शिक्षामित्रों के भरोसे प्राइमरी स्कूलों की तकदीर और तस्वीर बदलने की तैयारी में थी यूपी सरकार. साल 2008 तक प्रदेश में शिक्षामित्रों की संख्या 1 लाख 70 हजार के पार पहुंच गई.

        साल 2009 में बिना ट्रेनिंग के प्राइमरी स्कूलों में तैनाती बंद हो गई. इन शिक्षामित्रों को सरकार डिस्टेंस एजुकेशन के जरिए बीटीसी का कोर्स कराया जाने लगा. सैलरी में थोड़े-थोड़े बदलाव होते रहे. समायोजित होने से पहले तक इनका वेतन महज 3500 रुपये ही था.

साल 2012 में प्रदेश की अखिलेश सरकार ने शिक्षामित्रों को समायोजित करने का फैसला लिया. उन्हें सहायक अध्यापक के तौर पर नियुक्ति मिली. सैलरी 3500 से बढ़कर करीब 38 हजार मिलने लगी. इस फैसले के खिलाफ कुछ लोग हाईकोर्ट पहुंचे. बाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द कर दिया. हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, वहां भी 25 जुलाई 2017 को शिक्षामित्रों को निराशा ही हाथ लगी.
सरकारें आती-जाती रहीं, शिक्षामित्र वहीं के वहीं

ऐसे में नियुक्ति से लेकर अब तक की इस पूरी अवधि में शिक्षामित्रों में लगातार बैचेनी बनी हुई है. कभी कम सैलरी की बैचेनी, तो कभी समायोजन और फिर रद्द किए जाने के बाद की बेचैनी. सरकारें आती-जाती रही हैं, कई वादे और जुमले भी फेंके जाते रहे. लेकिन शिक्षामित्रों का स्थाई समाधान नहीं निकाला जा सका है. प्रधानमंत्री से लेकर यूपी के मुख्यमंत्री ने चुनावी स्टेज से शिक्षामित्रों के दर्द को तो भुनाया, लेकिन समस्याएं सुलझाने में कुछ तेजी नहीं दिखा सके.