गोरखपुर, जेएनएन। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में
अर्से बाद पूरी हुई शिक्षक भर्ती पर भाई-भतीजावाद से लैस होने, नियमों को
अनदेखा करने और व्यापक भ्रष्टाचार होने के आरोप लगे हैं। यह आरोप किसी
अभ्यर्थी ने नहीं वरन् विश्वविद्यालय कार्यपरिषद के वरिष्ठ सदस्य, अवध
विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो.राम अचल सिंह ने ही लगाए हैं।
बीते माह जुलाई में भी प्रो.राम अचल ने ऐसे ही आरोप लगाते हुए कार्यपरिषद की बैठक का बहिष्कार किया था और अब उन्होंने कुलाधिपति, मुख्यमंत्री, उ'च शिक्षा मंत्री और गोरखपुर नगर विधायक को पत्र लिखकर मामले की गहन जांच कराने की गुजारिश की है।
कार्यपरिषद के वरिष्ठ सदस्य के इस आरोप पत्र से विवि परिसर में खासी हलचल है। पत्र में उन्होंने कहा है कि यूं तो पूरी नियुक्ति में ही भ्रष्टाचार हुआ है लेकिन हिंदी और बायोटेक्नालॉजी की प्रक्रिया तो नियमविरुद्ध है। विश्वविद्यालय को इकाई मानकार जारी आरक्षण रोस्टर संबंधी केंद्र सरकार के नए शासनादेश के अनुरूप ही इसकी प्रक्रिया होनी चाहिए थी। कार्यपरिषद की बैठक में प्रो.सिंह ने जब नियमों की याद दिलाई तो कुलपति सुनने को तैयार न थे। अंतत: चयन समिति की संस्तुतियां परिषद के समक्ष रख दी गईं। प्रो.सिंह ने सदस्य के रूप में अपनी आपत्ति भी जताई लेकिन उसे भी बैठक की कार्यवृत्ति में शामिल नहीं किया गया। इस पर बीते आठ अगस्त को कुलसचिव को पत्र लिखकर उन्होंने अपनी आपत्तियों को बैठक कार्यवृत्ति में शामिल करने का पुन: अनुरोध किया और ऐसा न होने पर इसकी शिकायत कुलाधिपति से करने की चेतावनी भी दी। हालांकि कुलपति का कहना है कि उनकी आपत्तियों को अब कार्यवृत्ति में समाहित कर लिया गया है।
पुत्र-पुत्रियोंं व रिश्तेदारों की खूब हुई नियुक्ति
प्रो.राम अचल ने आरोप लगाया है कि विवि में शिक्षकों के
पुत्र-पुत्रियोंं व रिश्तेदारों की नियुक्ति खूब हुई है। उदाहरण देते हुए
बताया है कि हिंदी में प्रो. सुरेंद्र दुबे के पुत्र प्रत्यूष दुबे का चयन
प्रोफेसर पद पर, प्रो.अनंत मिश्र के नाती अखिल मिश्र का चयन सहायक आचार्य
पद पर हुआ है तो रसायन विज्ञान विभाग में प्रो.जीएस शुक्ल के बेटे डॉ.निखिल
कांत और प्रो.एमएल मिश्र श्रीवास्तव के बेटे डॉ.अखिलेश श्रीवास्तव का चयन
सहयुक्त आचार्य पद पर तथा प्रो.जितेंद्र मिश्र की बेटी डॉ.लक्ष्मी मिश्रा
और प्रो.केडीएस यादव के पुत्र डॉ.कमलेश का चयन असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर
हुआ है। शिकायतकर्ता के मुताबिक यह सूची बहुत लंबी है।
उम्र 61 के पार फिर भी बनाया आचार्य
शिकायत का अहम सवाल हिंदी विभाग में आचार्य पद पर नियुक्त हुए अरविंद
त्रिपाठी की नियुक्ति पर उठाया गया है। आकाशवाणी में सेवारत अरविंद
त्रिपाठी की उम्र नियुक्ति के समय 61 वर्ष थी और अगले ही वर्ष उन्हें
सेवानिवृत्त हो जाना है। यही नहीं प्रो.राम अचल का कहना है कि यह अभ्यर्थी
आचार्य पद की अर्हता नहीं रखते और उनकी नियुक्ति ने भ्रष्टाचार को
रेखागणितीय प्रगतिक्रम में बढ़ाया है।
पांच मिनट में होता गया साक्षात्कार
शिकायती पत्र में कहा गया है कि -रसायन विज्ञान और भौतिकी जैसे
विषयों में अभ्यर्थियों की संख्या 600-700 थी। प्रतिदिन करीब 100 अभ्यर्थी
साक्षात्कार देते थे। यदि एक अभ्यर्थी को पांच मिनट भी मिले तो साक्षात्कार
का समय आठ घंटे से अधिक होगा। महज पांच मिनट में ही बायोडाटा का वाचन और
विशेषज्ञों के सवाल के आधार पर किसी की पात्रता कैसे तय की जा सकती है?
साक्षात्कार एक नाटक था। यही नहीं कार्यपरिषद बैठक में यह पूछे जाने पर कि
अनारक्षित सीटों पर आरक्षित वर्ग के कितने अभ्यर्थी चयन के लिए अर्ह पाए
गए, कुलपति का जवाब था -कोई नहीं। जाहिर है आरक्षित वर्ग को जानबूझ कर कम
नंबर दिए गए ताकि वह सामान्य वर्ग की सूची अंतर्गत अर्ह ही न हो। प्रो.
सिंह ने कहा है कि शिक्षक चयन साक्षात्कारों का कुलपति ने कोई दस्तावेजी
साक्ष्य नहीं दिया।
विश्वविद्यालय की शिक्षक भर्ती में व्यापक भ्रष्टाचार हुआ है,
विसंगतियां हैं और नियमों की अनदेखी हुई है। यहां कार्यपरिषद की बैठक का
एजेंडा तक नहीं दिया गया, मैने विरोध जताया तब मिला। बैठक में भी मैने
नियमोंं के पालन करने की अपील की, लेकिन मेरी नहीं सुनी गई, यहां तक कि
मेरी आपत्तियों को बैठक की कार्यवृत्ति में शामिल तक नहीं किया गया। पूरी
प्रक्रिया के गहन जांच की बहुत जरूरत है। - प्रो. राम अचल सिंह, सदस्य, गोरखपुर विवि कार्यपरिषद व पूर्व कुलपति अवध विश्वविद्यालय।
प्रो. राम अचल सिंह ने यह पत्र हमें सोमवार को हमारे निवास पर स्वयं आकर
उपलब्ध कराया है। वे एक असंदिग्ध निष्ठा के सिद्ध ईमानदार व्यक्ति हैं। वह
अवध विश्वविद्यालय के कुलपति तथा उ'चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग के पूर्व
अध्यक्ष जैसे पदों पर रह चुके हैं और निर्विवाद रूप से खरे उतरे हैं। मैं
उनके द्वारा लिखित रूप से लगाए गए आरोपों को अति-गंभीरता से लेता हूं।
विचारोपरांत अपनी टिप्पणियों सहित राज्यपाल तथा उच्च शिक्षा मंत्री दिनेश
शर्मा से मुलाकात करेंगे। - डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल, नगर विधायक, गोरखपुर
शिक्षक चयन की पूरी प्रक्रिया को कार्यपरिषद ने स्वीकार किया है, सब कुछ पारदर्शी है और नियमानुकूल है। भ्रष्टाचार के आरोप निरर्थक हैं। प्रो. राम अचल सिंह कार्यपरिषद के वरिष्ठ सदस्य हैं, पिछले वर्ष और इस वर्ष नियुक्तियों के संबंध में हुई कार्यपरिषद की सभी बैठकों में वह उपस्थित रहे हैं। उनकी आपत्तियों को कार्यपरिषद की बैठक कार्यवृत्ति में शामिल भी कर लिया गया है। फिर भी अगर उन्हें कुछ अनुचित लगता है तो उसके समाधान के लिए वह जैसा उचित चाहें प्रयास कर सकते हैं। - प्रो. विजय कृष्ण सिंह, कुलपति, गोरखपुर विश्वविद्यालय।
बीते माह जुलाई में भी प्रो.राम अचल ने ऐसे ही आरोप लगाते हुए कार्यपरिषद की बैठक का बहिष्कार किया था और अब उन्होंने कुलाधिपति, मुख्यमंत्री, उ'च शिक्षा मंत्री और गोरखपुर नगर विधायक को पत्र लिखकर मामले की गहन जांच कराने की गुजारिश की है।
कार्यपरिषद के वरिष्ठ सदस्य के इस आरोप पत्र से विवि परिसर में खासी हलचल है। पत्र में उन्होंने कहा है कि यूं तो पूरी नियुक्ति में ही भ्रष्टाचार हुआ है लेकिन हिंदी और बायोटेक्नालॉजी की प्रक्रिया तो नियमविरुद्ध है। विश्वविद्यालय को इकाई मानकार जारी आरक्षण रोस्टर संबंधी केंद्र सरकार के नए शासनादेश के अनुरूप ही इसकी प्रक्रिया होनी चाहिए थी। कार्यपरिषद की बैठक में प्रो.सिंह ने जब नियमों की याद दिलाई तो कुलपति सुनने को तैयार न थे। अंतत: चयन समिति की संस्तुतियां परिषद के समक्ष रख दी गईं। प्रो.सिंह ने सदस्य के रूप में अपनी आपत्ति भी जताई लेकिन उसे भी बैठक की कार्यवृत्ति में शामिल नहीं किया गया। इस पर बीते आठ अगस्त को कुलसचिव को पत्र लिखकर उन्होंने अपनी आपत्तियों को बैठक कार्यवृत्ति में शामिल करने का पुन: अनुरोध किया और ऐसा न होने पर इसकी शिकायत कुलाधिपति से करने की चेतावनी भी दी। हालांकि कुलपति का कहना है कि उनकी आपत्तियों को अब कार्यवृत्ति में समाहित कर लिया गया है।
शिक्षक चयन की पूरी प्रक्रिया को कार्यपरिषद ने स्वीकार किया है, सब कुछ पारदर्शी है और नियमानुकूल है। भ्रष्टाचार के आरोप निरर्थक हैं। प्रो. राम अचल सिंह कार्यपरिषद के वरिष्ठ सदस्य हैं, पिछले वर्ष और इस वर्ष नियुक्तियों के संबंध में हुई कार्यपरिषद की सभी बैठकों में वह उपस्थित रहे हैं। उनकी आपत्तियों को कार्यपरिषद की बैठक कार्यवृत्ति में शामिल भी कर लिया गया है। फिर भी अगर उन्हें कुछ अनुचित लगता है तो उसके समाधान के लिए वह जैसा उचित चाहें प्रयास कर सकते हैं। - प्रो. विजय कृष्ण सिंह, कुलपति, गोरखपुर विश्वविद्यालय।