लखनऊ : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने 69,000 सहायक शिक्षक भर्ती प्रक्रिया जारी रखने की इजाजत दे दी है। शुक्रवार को डिवीजन बेंच ने एकल पीठ के तीन जून को पारित उस अंतरिम आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें पूरी भर्ती पर रोक लगा दी गई थी। नौ जून को सुप्रीम कोर्ट ने 69,000 पदों में से 37,339 पदों को शिक्षा मित्रों के लिए सुरक्षित रखने का आदेश दिया था। शुक्रवार को लखनऊ खंडपीठ ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि 37,339 पदों को छोड़ शेष बचे पदों पर सरकार भर्ती प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए स्वतंत्र है।
यह आदेश जस्टिस पंकज कुमार जायसवाल एवं जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार की परीक्षा नियंत्रक प्राधिकरण की ओर से एकल पीठ के 3 जून के आदेश को चुनौती देते हुए दायर तीन विशेष अपीलों पर पारित किया है।
उल्लेखनीय है कि एकल पीठ ने सरकार द्वारा 08 मई 2020 को घोषित परीक्षा परिणाम पर सवालिया निशान लगाते हुए कुछ प्रश्नों एवं उत्तर कुंजी पर भ्रम की स्थिति पाते हुए पूरी चयन प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी। डिवीजन बेंच ने परीक्षा प्राधिकरण की ओर से दिए गए तर्को पर प्रथम दृष्टया विचार करने पर पाया कि एकल पीठ ने स्वयं कहा था कि यदि प्रश्नों व उत्तर कुंजी में किसी प्रकार की भ्रम की स्थिति हो तो ऐसे में परीक्षा कराने वाली संस्था को भ्रम का लाभ दिया जाता है, तो ऐसे में उक्त टिप्पणी के खिलाफ जाकर परीक्षा प्राधिकरण की ओर से प्रस्तुत जवाब को सही न मानकर पूरे मामले को यूजीसी को भेजने का कोई औचित्य नहीं था। बेंच ने यह भी पाया कि एकल पीठ ने परीक्षा नियंत्रक प्राधिकरण के इस तर्क पर भी उचित ध्यान नहीं दिया कि रिट याचिका इसलिए पोषणीय नहीं थी क्योंकि असफल अभ्यर्थियों ने सभी सफल अभ्यर्थियों को याचिकाओं में पक्षकार नहीं बनाया था।
यह आदेश जस्टिस पंकज कुमार जायसवाल एवं जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार की परीक्षा नियंत्रक प्राधिकरण की ओर से एकल पीठ के 3 जून के आदेश को चुनौती देते हुए दायर तीन विशेष अपीलों पर पारित किया है।
उल्लेखनीय है कि एकल पीठ ने सरकार द्वारा 08 मई 2020 को घोषित परीक्षा परिणाम पर सवालिया निशान लगाते हुए कुछ प्रश्नों एवं उत्तर कुंजी पर भ्रम की स्थिति पाते हुए पूरी चयन प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी। डिवीजन बेंच ने परीक्षा प्राधिकरण की ओर से दिए गए तर्को पर प्रथम दृष्टया विचार करने पर पाया कि एकल पीठ ने स्वयं कहा था कि यदि प्रश्नों व उत्तर कुंजी में किसी प्रकार की भ्रम की स्थिति हो तो ऐसे में परीक्षा कराने वाली संस्था को भ्रम का लाभ दिया जाता है, तो ऐसे में उक्त टिप्पणी के खिलाफ जाकर परीक्षा प्राधिकरण की ओर से प्रस्तुत जवाब को सही न मानकर पूरे मामले को यूजीसी को भेजने का कोई औचित्य नहीं था। बेंच ने यह भी पाया कि एकल पीठ ने परीक्षा नियंत्रक प्राधिकरण के इस तर्क पर भी उचित ध्यान नहीं दिया कि रिट याचिका इसलिए पोषणीय नहीं थी क्योंकि असफल अभ्यर्थियों ने सभी सफल अभ्यर्थियों को याचिकाओं में पक्षकार नहीं बनाया था।