डिवीजन बेंच ने परीक्षा प्राधिकरण की ओर से दिए गए तर्कों पर विचार करने पर पाया कि सिंगल बेंच ने स्वयं कहा था
कि अगर क्वेश्चन और आन्सर-कौ में भ्रम की स्थिति हो तो ऐसे में एग्जाम कराने वाली संस्था को भ्रम का लाभ दिया जाता है, ऐसे में परीक्षा प्राधिकरण की ओर से प्रस्तुत जवाब को सही न मानकर पूरे मामले को यूजीसी को भेजने का कोई औचित्य नहीं था.
कि अगर क्वेश्चन और आन्सर-कौ में भ्रम की स्थिति हो तो ऐसे में एग्जाम कराने वाली संस्था को भ्रम का लाभ दिया जाता है, ऐसे में परीक्षा प्राधिकरण की ओर से प्रस्तुत जवाब को सही न मानकर पूरे मामले को यूजीसी को भेजने का कोई औचित्य नहीं था.