69000 भर्ती मामले में पुलिस व एसटीएफ पहले सक्रिय होती तो न होता फर्जीवाड़ा

69000 सहायक शिक्षक भर्ती में धांधली को लेकर बवाल मचा हुआ है। नकल कराने से लेकर रैकेट संचालित करने वाले के खुलासे के लिए शासन ने एसटीएफ को जिम्मेदारी दी है। 6 जनवरी 2019 को जब इसकी परीक्षा चल रही थी, उस वक्त भी निगरानी की जिम्मेदारी एसटीएफ को थी। अगर उस वक्त एसटीएफ थोड़ी सक्रिय हुई होती तो यह धांधली नहीं होती। परीक्षा के दौरान भी 27 नकलची पकड़े गए थे लेकिन इसकी जांच में स्थानीय पुलिस ने गंभीरता नहीं दिखाई।



अध्यापकों की भर्ती के लिए 6 जनवरी 2019 को सूबे के 800 केंद्रों पर 11 से 1.30 बजे की पाली में लिखित परीक्षा कराई गई। परीक्षा में 27 अभ्यर्थियों को नकल के आरोप में पकड़ा गया। सभी के खिलाफ एफआईआर कराई गई। लखनऊ से एसटीएफ ने नौ सॉल्वर को पकड़ा। प्रयागराज से जयंत कुमार मौर्या के स्थान पर दूसरा व्यक्ति परीक्षा देते पकड़ा गया। करेली से एसटीएफ ने एक सॉल्वर पकड़ा। कटरा से एक छात्रा को हाथ से लिखी पर्ची के साथ पकड़ा गया। नैनी से एक छात्रा को इलेक्ट्रानिक डिवाइस का प्रयोग करते पकड़ा गया। झूंसी में दूसरे के स्थान पर एक अभ्यर्थी परीक्षा देते मिला। कानपुर नगर के दो स्कलों से एक-एक सॉल्वर एसटीएफ ने पकड़े। मिर्जापुर में अनिला कुमारी यादव को पर्ची के साथ पकड़ा गया।


ऐसे ही आजमगढ़ और मुरादाबाद में भी नकलची और दूसरे के स्थान पर परीक्षा देते लोग पकड़े गए थे। उस वक्त पुलिस और एसटीएफ ने कार्रवाई करते हुए नकलची भी पकड़े लेकिन पुलिस और एसटीएफ ने रैकेट चलाने वाले का खुलासा नहीं किया। विभिन्न जनपदों में मुकदमे दर्ज किए गए। इसके बाद भी विवेचक ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। अगर उसी वक्त सही से जांच हो गई होती तो आज नकल कराने वाले गिरोह की बात सामने नहीं आती।