शिक्षामित्रों के लिए खोजा जा रहा बीच का रास्ता, सुप्रीम कोर्ट के आदेश को प्रभावित किए बिना राहत देने की हो रही कवायद

शिक्षामित्रों के मामले में अब प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश को प्रभावित किए बिना उन्हें राहत देने के रास्ते खोज रही है। इसके लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेश पर उपमुख्यमंत्री डॉ़ दिनेश शर्मा की अध्यक्षता में बनी कमिटी ने संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी हैं।
कमिटी की बैठकें शुरू हो चुकी हैं। इसके लिए न्याय विभाग और वित्त विभाग से शिक्षामित्रों का मानदेय बढ़ाने की संभावनाओं पर सलाह मांगी गई है।
इसके लिए सरकार शिक्षामित्र संगठनों की ओर से दिए गए दूसरे राज्यों के फॉर्म्युले भी सरकार पलट रही है। आदर्श समायोजित शिक्षक वेलफेयर असोसिएशन के अध्यक्ष जितेंद्र शाही का कहना है कि हरियाणा में 22 हजार, महाराष्ट्र में 35 हजार, बिहार में 19 से 22 हजार, झारखंड में 30 हजार, दिल्ली में 32 हजार, हिमाचल प्रदेश में 21,400 रुपये मानदेय हर महीने दिया जाता है। छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश ने तो संविलियन/समायोजन का आदेश भी जारी कर दिया है। वहीं, उत्तराखंड सरकार शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बना चुकी है जबकि, यूपी में 11 महीने ही 10 हजार मानेदय मिलता है। शिक्षामित्रों के लिए बनाई गई कमिटी की खास बात यह है कि विभागीय मंत्री अनुपमा जायसवाल को इसमें जगह नहीं दी गई है। माना जा रहा है कि इस मामले को सुलझाने में उनकी विफलता के चलते उन्हें किनारे लगाया गया है।
पिछले साल जुलाई के आखिर में सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश के 1.37 लाख शिक्षामित्रों की सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति को रद कर दिया था। इसके बाद से ही वे आंदोलनरत हैं।

सरकार ने उनका मानदेय बढ़ाकर 3500 से 10 हजार कर दिया था। हाल में बेसिक शिक्षा विभाग ने शिक्षामित्रों को उनके मूल विद्यालय में तैनाती का विकल्प भी दे दिया, लेकिन वे इससे भी संतुष्ट नहीं हैं। 25 जुलाई को राजधानी में महिला शिक्षामित्रों तक ने सिर मुड़वा कर प्रदर्शन किया था।