पढ़ाई-लिखाई का भविष्य: सरकार को पूरी तरह सुरक्षित माहौल में स्कूल कॉलेज खुलवाने की दिशा में ही सोचना चाहिए

जुलाई के दस्तक देते ही यह सवाल मुखर होना स्वाभाविक है कि स्कूल-कॉलेज कब खुलेंगे और कक्षाओं में पढ़ाई कब शुरू होगी? यह सवाल उठना इसलिए भी लाजिमी है क्योंकि स्कूल-कॉलेजों के अलावा बाकी सब 


कुछ खुल चुका है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं, क्योंकि हाट-बाजार और स्कूल-कॉलेजों की परिस्थितियां बिल्कुल भिन्न हैं। शैक्षिक परिसरों में बच्चे और किशोर जुटते हैं जिनसे सुरक्षा उपायों के सख्त अनुपालन की अपेक्षा नहीं की जा सकती। इसलिए सर्वोच्च स्तरीय सुरक्षा प्रणाली के बगैर शिक्षण संस्थान खोलना खतरनाक है, खासकर यह देखते हुए कि कोरोना संक्रमण फिलहाल थमा नहीं है। जाहिर है, मौजूदा माहौल में अभिभावक भी बच्चों को स्कूल-कॉलेज भेजकर खतरा नहीं उठाना चाहेंगे। उधर, कोरोना के प्रसार की अनिश्चितता देखते हुए शिक्षण संस्थान अनिश्चितकाल के लिए बंद नहीं रखे जा सकते। नए शिक्षा सत्र को इस दुविधा से बाहर निकालने का सिर्फ एक तरीका है कि शैक्षिक परिसरों को ऐसे कवच में सुरक्षित किया जाए जिसमें संक्रमण की कतई गुंजायश न रहे। यह असंभव नहीं है, पर इसके लिए राज्य सरकार को प्रबल इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करना होगा। जो निजी स्कूल संचालक महीनों से घर बैठे विद्यार्थियों से फीस लेने के लिए यूनियनबाजी कर रहे हैं, उन्हें वचन देना चाहिए कि वे अपने विद्यालय में प्रत्येक विद्यार्थी और शिक्षक को संक्रमणमुक्त रखने की गारंटी देते हैं। वे इसके लिए दुनिया के देशों में प्रचलित सवरेत्तम सुरक्षा प्रणालियां अपने विद्यालयों में स्थापित करें ताकि विद्यार्थी और शिक्षक बेफिक्र होकर पठन-पाठन में जुट सकें। ऐसे ही इंतजाम सरकार को राजकीय विद्यालयों में भी करने होंगे। सरकार और निजी विद्यालय इस इंतजाम के लिए पर्याप्त समय लें, पर इसकी समय सीमा घोषित कर दी जानी चाहिए। कुछ हफ्तों के अनुभव से साबित हो चुका है कि ऑनलाइन शिक्षा के लिए निरंतर अभ्यास की जरूरत है। फिलहाल इसे क्लासरूम शिक्षा का विकल्प नहीं माना जा सकता। कोरोनाकाल की मजबूरी ने इस अवधारणा को बेशक मेट्रो शहरों से गांवों तक पहुंचा दिया है यद्यपि प्रभाव की कसौटी पर इसे अपेक्षानुसार कारगर नहीं माना जा सकता। इन हालात में सरकार को पूरी तरह सुरक्षित माहौल में स्कूल-कॉलेज खुलवाने की दिशा में ही सोचना चाहिए।