अन्य राज्यों की तरह शिक्षक भर्ती में यूपी भी दागदार

इलाहाबाद : भर्तियों खासकर शिक्षकों की नियुक्तियों में छिटपुट गड़बड़ियां रह-रहकर सामने आती रही हैं, लेकिन एक लाख 37 हजार शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक पद पर समायोजन रद होने से उत्तर प्रदेश भी बड़ी शिक्षक भर्ती में दागदार हो गया है।
हालांकि यूपी की शिक्षक भर्ती में गड़बड़ी का खामियाजा नेताओं व अफसरों के बजाय शिक्षामित्रों को ही भुगतना पड़ रहा है, जबकि अन्य राज्यों में गड़बड़ी उजागर होने पर कई सफेदपोश व नौकरशाहों को भी दंडित होना पड़ा है।

शिक्षक भर्ती में अपनों को लाभ पहुंचाने के मामले में देश के कई राज्य पहले ही सामने आ चुके हैं। इनमें मध्य प्रदेश का व्यापम घोटाला, हरियाणा, हिमाचल, झारखंड व पूवरेत्तर के असम आदि में शिक्षकों के चयन में हेराफेरी करने के मामले खुल चुके हैं। उत्तर प्रदेश में टीईटी यानी शिक्षक पात्रता परीक्षा 2011 में गड़बड़ी होने पर पूर्व शिक्षा निदेशक तक को जेल जाना पड़ा। लोकसेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष अनिल यादव, माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड उप्र के अध्यक्ष सनिल कुमार, उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष लाल बिहारी पांडेय की नियुक्ति हाईकोर्ट से पहले ही रद हो चुकी है, लेकिन देश स्तर पर अब शिक्षामित्रों का समायोजन रद होने पर किरकिरी हुई है। शिक्षामित्रों के चयन में मानकों की जमकर धज्जियां उड़ाई गईं।
सपा सरकार व अफसरों ने मनमाने तरीके से इंटरमीडिएट उत्तीर्ण अभ्यर्थियों का चयन शिक्षामित्र के रूप में कर डाला और फिर समायोजन में भी शिक्षक नियमावली तार-तार हुई। सरकार ने राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद यानी एनसीटीई के निर्देशों तक की परवाह नहीं की।समायोजन रद होने से शिक्षामित्र भड़क गए हैं और वह केंद्र व प्रदेश सरकार के विरुद्ध आक्रामक हैं। इससे यह है कि भर्ती में गड़बड़ी भले ही तुगलकी नियमों की वजह से हुई, लेकिन इसके जिम्मेदार अफसर व नेताओं के बजाय शिक्षामित्रों को ही एकतरफा दंड मिला है। इसके पहले भी उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग उप्र के पूर्व उप सचिव संजय सिंह के मामले में हलफनामा देने वाले अफसरों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, केवल संजय सिंह को ही बर्खास्त कर दिया गया।

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