शिक्षामित्रों के सुनहरे भविष्य की डगमगाने लगी नाव, बड़े आराम से चल रही थी गृहस्थी की नाव, अचानक आया भूचाल

बड़े आराम से गृहस्थी की नाव सरकारी नौकरी की नदी में चल रही थी। कुछ तूफान आए, पर वह आकर गुजर गए, लेकिन इस बार का तूफान उम्मीदों को भंवर में धकेल गया। अब राह बड़ी कठिन है। फिर से कांटों भरी राह पर कदम रखने की चुनौती है।
शिक्षामित्र से शिक्षक बने जिले के करीब 3000 लोगों को अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मुख्यमंत्री योगी का ही सहारा है। समायोजित शिक्षकों को मलाल है कि पिछले 17 सालों से वह बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। सरकार समान कार्य का समान वेतन देने की हिमायती है। ऐसे में उन्हें एक शिक्षक के समान वेतन दिया जाना चाहिए। जागरण ने बात छेड़ी तो समायोजित शिक्षकों का दर्द छलक उठा। उनका कहना था कि अब उन्हें पीएम व सीएम का ही सहारा है। चंद्रावती ने कहा कि सरकार अपने वादे को पूरा करे। लक्ष्मी मिश्र ने कहा कि विधान सभा चुनाव के समय भाजपा ने जो संकल्प पत्र जनता के सामने प्रस्तुत किया था उसमें भी उनका मुद्दा शामिल था। शीला ने कहा कि अब वह समय आ गया है जब सरकार को उसका वादा याद कराना होगा। आरती ने कहा कहा कि पहले तो उन्हें शिक्षक बनाया गया अब उसे रद करना कहां का न्याय है। राकेश मिश्र ने कहा कि शिक्षा का स्तर बढ़ाने केलिए वह सभी प्रयासरत हैं। अब उनके साथ न्याय नहीं हो रहा है। अमित शर्मा का कहना था कि प्रधानमंत्री ने वाराणसी की सभा में शिक्षामित्रों को आश्वस्त रहने का आश्वासन दिया था। श्याम शंकर ने कहा कि वह सभी पूरी निष्ठा से कार्य कर रहे थे। उसका ईनाम मिलना चाहिए। इंद्र कुमार ओझा ने कहा कि भाजपा शासन काल में ही उन्हें शिक्षामित्र बनाया गया था, अब शिक्षक बनाया जाना चाहिए। प्रदीप पांडेय ने कहा कि सरकार को उनके बारे में सोचना होगा और पहल करनी होगी। शिशिर सिंह ने कहा कि बेसिक स्कूलों में शिक्षामित्रों ने काफी सुधार किया है। सुप्रीम कोर्ट से राहत की आशा थी लेकिन परिणाम विपरीत रहा अब तो सरकार का ही सहारा है।शिशिर सिंह >> प्रदीप पांडेय >> इंद्रकुमार श्याम शंकरलक्ष्मी मिश्र >> चंद्रवती >> शीला >>>>अमित शर्मा’>>शिक्षामित्र चाहते हैं सरकार बने पतवार1’>>अयोग्य न कहें, योग्यता की है साबित

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