सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यूपी में सहायक अध्यापक पद पर समायोजित शिक्षामित्रों ने अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार कर दिया है. एक साथ प्रदेश के 1 लाख, 37 हजार समायोजित शिक्षामित्रों के कार्य बहिष्कार से स्कूलों के तालों तक को खोलना मुश्किल हो गया है.
राजधानी लखनऊ की ही बात करें तो उदयगंज, नौबस्ता, नेपियर रोड सहित कई प्राइमरी स्कूलों में एक भी टीचर पढ़ाने के लिए नहीं बचा है. यह स्थति पूरे प्रदेश की है. वहीं शिक्षामित्र अब सड़कों पर उतरने की तैयारी में हैं. उनका कहना है कि जब तक उनको राहत नहीं मिलेगी उनका कार्य बहिष्कार चालू रहेगा.
इस बीच प्रदेश के कई जिलों से शिक्षामित्रों के प्रदर्शन की भी खबर आ रही है. लखनऊ, आगरा, कानपुर, वाराणसी, फर्रुखाबाद, फिरोजाबाद समेत कई जिलों में शिक्षामित्र सड़कों पर उतर आए हैं.
वहीं इस मामले में शिक्षामित्रों का एक प्रतिनिधिमंडल मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से मिलने दिल्ली भी जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अध्ययन कर होगी कार्रवाई: मंत्री
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रदेश सरकार की शिक्षा मंत्री अनुपमा जायसवाल ने साफ कर दिया है कि इस निर्णय का पालन करते ही आगे की कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अध्ययन किया जा रहा है, मामले में अधिकारियों से विचार विमर्श के बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा.
उधर शिक्षक संगठन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद योगी सरकार से कानून बनाकर शिक्षामित्रों को बचाने की मांग कर रहे हैं. संयुक्त सक्रिय शिक्षक-शिक्षामित्र समिति के प्रदेश संरक्षक दुष्यंत सिंह कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को सही मानते हुए समायोजन रद्द कर दिया है.
यूपी में शिक्षा मित्रों का सफर
दरअसल पूरी कहानी शुरू होती है 26 मई 1999 से जब उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश के हर प्राथमिक विद्यालय में दो शिक्षामित्रों की नियुक्ति का शासनादेश जारी किया.
इसके दो साल बाद 2001 में 2250 रुपए प्रतिमाह के मानदेय पर शिक्षामित्रों की नियुक्ति शुरू हुई. ये मानदेय 2005 में 2400 रुपए किया गया, इसके बाद 2007 में 3000 और आखिरकार 2010 में 3500 रुपए कर दिया गया.
2010 आते-आते प्रदेश में 1 लाख 68 हजार शिक्षामित्रों की तैनाती हो चुकी थी. इसी साल तत्कालीन सरकार ने शिक्षामित्रों के संबंध में अहम फैसला लेते हुए उन्हें सीधे सहायक अध्यापक के पद पर समायोजित करने का फरमान जारी किया. 2015 तक प्रदेश के एक लाख 37 हजार शिक्षामित्र सहायक अध्यापक बन चुके थे.
इसी बीच 12 सितंबर 2015 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार के समायोजन के फैसले को नियम विरुद्ध करार दिया और फैसला रद्द कर दिया. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जिसने पहले 7 दिसंबर 2015 को स्टे दिया और अब 25 जुलाई को हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है.
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- देखें मुख्य बिंदु सुप्रीम कोर्ट आदेश का शिक्षा मित्र समायोजन रद्द , वापस शिक्षा मित्र बनेंगे अगर राज्य सरकार चाहे
- देखें शिक्षा मित्र पर सुप्रीम कोर्ट आदेश के महत्वपूर्ण आदेश के हिस्से
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राजधानी लखनऊ की ही बात करें तो उदयगंज, नौबस्ता, नेपियर रोड सहित कई प्राइमरी स्कूलों में एक भी टीचर पढ़ाने के लिए नहीं बचा है. यह स्थति पूरे प्रदेश की है. वहीं शिक्षामित्र अब सड़कों पर उतरने की तैयारी में हैं. उनका कहना है कि जब तक उनको राहत नहीं मिलेगी उनका कार्य बहिष्कार चालू रहेगा.
इस बीच प्रदेश के कई जिलों से शिक्षामित्रों के प्रदर्शन की भी खबर आ रही है. लखनऊ, आगरा, कानपुर, वाराणसी, फर्रुखाबाद, फिरोजाबाद समेत कई जिलों में शिक्षामित्र सड़कों पर उतर आए हैं.
वहीं इस मामले में शिक्षामित्रों का एक प्रतिनिधिमंडल मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से मिलने दिल्ली भी जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अध्ययन कर होगी कार्रवाई: मंत्री
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रदेश सरकार की शिक्षा मंत्री अनुपमा जायसवाल ने साफ कर दिया है कि इस निर्णय का पालन करते ही आगे की कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अध्ययन किया जा रहा है, मामले में अधिकारियों से विचार विमर्श के बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा.
उधर शिक्षक संगठन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद योगी सरकार से कानून बनाकर शिक्षामित्रों को बचाने की मांग कर रहे हैं. संयुक्त सक्रिय शिक्षक-शिक्षामित्र समिति के प्रदेश संरक्षक दुष्यंत सिंह कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को सही मानते हुए समायोजन रद्द कर दिया है.
यूपी में शिक्षा मित्रों का सफर
दरअसल पूरी कहानी शुरू होती है 26 मई 1999 से जब उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश के हर प्राथमिक विद्यालय में दो शिक्षामित्रों की नियुक्ति का शासनादेश जारी किया.
इसके दो साल बाद 2001 में 2250 रुपए प्रतिमाह के मानदेय पर शिक्षामित्रों की नियुक्ति शुरू हुई. ये मानदेय 2005 में 2400 रुपए किया गया, इसके बाद 2007 में 3000 और आखिरकार 2010 में 3500 रुपए कर दिया गया.
2010 आते-आते प्रदेश में 1 लाख 68 हजार शिक्षामित्रों की तैनाती हो चुकी थी. इसी साल तत्कालीन सरकार ने शिक्षामित्रों के संबंध में अहम फैसला लेते हुए उन्हें सीधे सहायक अध्यापक के पद पर समायोजित करने का फरमान जारी किया. 2015 तक प्रदेश के एक लाख 37 हजार शिक्षामित्र सहायक अध्यापक बन चुके थे.
इसी बीच 12 सितंबर 2015 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार के समायोजन के फैसले को नियम विरुद्ध करार दिया और फैसला रद्द कर दिया. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जिसने पहले 7 दिसंबर 2015 को स्टे दिया और अब 25 जुलाई को हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है.
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