इलाहाबाद (जेएनएन)। प्राथमिक स्कूलों में सहायक अध्यापक भर्ती की
प्रस्तावित लिखित परीक्षा को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है, जिसे
हाईकोर्ट ने स्वीकार करते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी की है।
कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि याचिका लंबित रहने का यह आशय नहीं होगा कि कोर्ट ने इस मामले में कोई अंतरिम आदेश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने शिक्षामित्र अनिल कुमार वर्मा व दिनेश कुमार की याचिका पर दिया है। याची के अधिवक्ता ज्ञानेंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि बीते 25 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को शिक्षामित्रों का समायोजन रद करने के बाद शिक्षामित्र के रूप में ही बनाए रखने का विवेकाधिकार दिया है। राज्य सरकार ने टीईटी उत्तीर्ण शिक्षामित्रों को भी लिखित परीक्षा कराकर सहायक अध्यापक नियुक्त करने का आदेश जारी किया है। कहा कि इस परीक्षा में शिक्षामित्रों के अलावा अन्य लोग भी बैठ सकेंगे। सरकार ने परीक्षा कराने का उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना बताया है।
अधिवक्ता ने शिक्षामित्रों की दलील दी कि शिक्षकों की लिखित परीक्षा शीर्ष कोर्ट के आदेश के अनुपालन को शून्य करने वाली है। शिक्षामित्र विशेष वर्ग से आते हैं इसलिए उन पर भर्ती की शर्तें थोपी नहीं जा सकती। उन्होंने कहा कि यदि परीक्षा करानी ही है तो उसमें गैर शिक्षामित्र को शामिल न किया जाए, बल्कि उनके ही वर्ग में कराई जाए। यह भी कहा गया कि शीर्ष कोर्ट के निर्णय में लिखित परीक्षा का कोई प्रावधान नहीं था, हालांकि शासन को चयन प्रक्रिया निर्धारित करने और सेवा नियमावली में संशोधन का पूरा अधिकार है।
कोर्ट में यह भी कहा गया कि शीर्ष कोर्ट ने विशेष तथ्य व परिस्थितियों को देखकर ही शिक्षामित्रों को आयु में छूट, भारांक व आगामी दो भर्तियों में अवसर देने को कहा है। साथ ही शिक्षामित्रों को मूल पद पर वापसी का मामला शासन के विवेक पर छोड़ दिया था। कहा गया कि शासन एक ओर शीर्ष कोर्ट का अनुपालन करने की बात कर रहा है, वहीं दूसरी ओर लिखित परीक्षा कराकर आदेश को व्यर्थ कर रहा है। कोर्ट ने अभी इस मामले में अगली सुनवाई की तारीख तय नहीं की है।
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कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि याचिका लंबित रहने का यह आशय नहीं होगा कि कोर्ट ने इस मामले में कोई अंतरिम आदेश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने शिक्षामित्र अनिल कुमार वर्मा व दिनेश कुमार की याचिका पर दिया है। याची के अधिवक्ता ज्ञानेंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि बीते 25 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को शिक्षामित्रों का समायोजन रद करने के बाद शिक्षामित्र के रूप में ही बनाए रखने का विवेकाधिकार दिया है। राज्य सरकार ने टीईटी उत्तीर्ण शिक्षामित्रों को भी लिखित परीक्षा कराकर सहायक अध्यापक नियुक्त करने का आदेश जारी किया है। कहा कि इस परीक्षा में शिक्षामित्रों के अलावा अन्य लोग भी बैठ सकेंगे। सरकार ने परीक्षा कराने का उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना बताया है।
अधिवक्ता ने शिक्षामित्रों की दलील दी कि शिक्षकों की लिखित परीक्षा शीर्ष कोर्ट के आदेश के अनुपालन को शून्य करने वाली है। शिक्षामित्र विशेष वर्ग से आते हैं इसलिए उन पर भर्ती की शर्तें थोपी नहीं जा सकती। उन्होंने कहा कि यदि परीक्षा करानी ही है तो उसमें गैर शिक्षामित्र को शामिल न किया जाए, बल्कि उनके ही वर्ग में कराई जाए। यह भी कहा गया कि शीर्ष कोर्ट के निर्णय में लिखित परीक्षा का कोई प्रावधान नहीं था, हालांकि शासन को चयन प्रक्रिया निर्धारित करने और सेवा नियमावली में संशोधन का पूरा अधिकार है।
कोर्ट में यह भी कहा गया कि शीर्ष कोर्ट ने विशेष तथ्य व परिस्थितियों को देखकर ही शिक्षामित्रों को आयु में छूट, भारांक व आगामी दो भर्तियों में अवसर देने को कहा है। साथ ही शिक्षामित्रों को मूल पद पर वापसी का मामला शासन के विवेक पर छोड़ दिया था। कहा गया कि शासन एक ओर शीर्ष कोर्ट का अनुपालन करने की बात कर रहा है, वहीं दूसरी ओर लिखित परीक्षा कराकर आदेश को व्यर्थ कर रहा है। कोर्ट ने अभी इस मामले में अगली सुनवाई की तारीख तय नहीं की है।
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