देवरिया बखास्त शिक्षकों से वेतन को रिकवरी करने में बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों का रवैया सुस्त बना हुआ है। फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर नौकरी करने वाले ऐसे शिक्षक, जो अब सेवा से बाहर किए जा चुके हैं, उन पर पिछले पांच वर्षों में विभाग को 25 करोड़ से अधिक रुपये की चपत लगाने का आरोप है। इनसे रकम की वसूली कब की जाएगी, विभागीय लोग इस पर कन्नी कारते दिखते हैं।
शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की शिकायत मिलने पर शुरू से ही शासन के रडार पर जनपद रहा है। काफी संख्या में यहां फर्जी शिक्षकों की तैनाती है। शासन के दबाव में जांच का दायरा बढ़ा तो ऐसे शिक्षकों की नींद हराम हो गई। चार साल पहले शासन स्तर से इस मामले को एसटीएफ को सौंप दिया गया। एसटीएफ एवं विभागीय स्तर पर
शुरू हुई जांच में कूटरचित शैक्षिक प्रमाणपत्र, पेन, आधार बदलने के अलावा एक ही नाम से कई ऐसे शिक्षक मिले, जो दो जिलों में नौकरी करते पाए गए। मानव संपदा पोर्टल पर भी शैक्षिक प्रमाण पत्रों एवं अन्य दस्तावेजों में फर्जीवाड़ा पकड़ में आया। फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर जिले के परिषदीय विद्यालयों में कार्यरत रहे और सत्यापन के बाद कूटरचित सिद्ध होने के बाद बीते चार से पांच वर्षों में अब तक 56 शिक्षकों को सेवा से बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है। इनमें से अधिकाश शिक्षकों पर खंड शिक्षा अधिकारियों की ओर से केस भी दर्ज कराया गया है। हालांकि आज तक विभाग इन शिक्षकों से वेतन की रिकवरी नहीं कर सका है। इसके लिए क्या खाका बन रहा है या किस तरह यह काम किया जाएगा, इसकी कोई तैयारी अब तक नहीं की गई है।