लखनऊः 69000 शिक्षक भर्ती प्रक्रिया पर रोक मामले में
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को अपना फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने
अभ्यर्थियों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए भर्ती प्रक्रिया की रोक को हटा
दिया है। अब अभ्यर्थियों की नियुक्ति का रास्ता साफ हो गया है। इलाहाबाद
हाईकोर्ट की डबल बेंच ने ये फैसला सुनाया है। लखनऊ पीठ के जज पीके जायसवाल
और जज दिनेश कुमार सिंह की पीठ ने इस पर सुनवाई कर फैसला सुरक्षित रखा था।
हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति पी के जायसवाल और न्यायमूर्ति डी के सिंह की खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के 9 जून के आदेश को ध्यान में रखते हुये भर्ती प्रक्रिया जारी रखने के लिए स्वतंत्र है जिसके माध्यम से करीब 37 हजार पद शिक्षा मित्रों के लिए रखे गये हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘राज्य सरकार 37,339 पदों के अलावा बाकी के सहायक शिक्षकों के पदों को भर सकती है। दूसरे शब्द में कहें तो सहायक शिक्षकों के 37,339 पदों को खाली रखना होगा। अन्य पद भरे जा सकते हैं।'' इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने तीन जून को प्रदेश में 69 हजार सहायक शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगा दी थी। अदालत ने कहा था कि सरकार द्वारा गत 8 मई को परीक्षा परिणाम घोषित करने संबधी अधिसूचना पर रोक लगायी जाती है।
उधर दिल्ली में नौ जून को उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को सहायक बेसिक शिक्षकों के सभी 69,000 पदों को नहीं भरने और 37,339 ऐसे पदों को रिक्त रखने को कहा था जिस पर अभी शिक्षा मित्र काम कर रहे हैं। शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि उसने 21 मई को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि सहायक शिक्षक पद पर काम कर रहे सभी शिक्षा मित्रों की सेवा में व्यवधान नहीं डाला जाएगा। सहायक शिक्षकों की भर्ती करने वाले उत्तर प्रदेश परीक्षा नियामक प्राधिकरण ने इससे पहले अदालत में तीन अपीलें दाखिल की थीं और चयन पर तीन जून के अंतरिम स्थगन को चुनौती दी थी।
प्राधिकरण ने दलील दी थी कि केवल 31 अभ्यर्थियों की याचिकाओं पर जारी एकल पीठ का आदेश कानूनी तौर पर विचारणीय नहीं है जिसमें सफल उम्मीदवारों को सुनवाई में पक्ष रखने का कोई अवसर नहीं दिया गया। न्यायमूर्ति आलोक माथुर की एकल पीठ ने आदेश पारित किया था । अदालत ने पाया था कि आठ मई को जो परीक्षा परिणाम घोषित किया गया था उसमें कुछ प्रश्नों एवं उनके उत्तर में भ्रम की स्थिति थी लिहाजा न्याय हित में अदालत ने सही हल जानने के लिए मामला यूजीसी को भेजने का आदेश दिया था।
असफल अभ्यर्थियों ने एकल पीठ से प्राधिकरण को यह निर्देश देने की गुहार लगाई थी कि उन्हें उन कई प्रश्नों के लिए सामान्य अंक दिये जाएं जिन्हें अदालत ने भी बाद में भ्रामक बताया है ताकि उन्हें कट-ऑफ अंक मिल सकें। प्राधिकरण की ओर से राज्य के महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने दलील दी थी कि अदालत को याचिकाओं पर विचार करने का कोई अधिकार नहीं है।
हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति पी के जायसवाल और न्यायमूर्ति डी के सिंह की खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के 9 जून के आदेश को ध्यान में रखते हुये भर्ती प्रक्रिया जारी रखने के लिए स्वतंत्र है जिसके माध्यम से करीब 37 हजार पद शिक्षा मित्रों के लिए रखे गये हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘राज्य सरकार 37,339 पदों के अलावा बाकी के सहायक शिक्षकों के पदों को भर सकती है। दूसरे शब्द में कहें तो सहायक शिक्षकों के 37,339 पदों को खाली रखना होगा। अन्य पद भरे जा सकते हैं।'' इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने तीन जून को प्रदेश में 69 हजार सहायक शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगा दी थी। अदालत ने कहा था कि सरकार द्वारा गत 8 मई को परीक्षा परिणाम घोषित करने संबधी अधिसूचना पर रोक लगायी जाती है।
उधर दिल्ली में नौ जून को उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को सहायक बेसिक शिक्षकों के सभी 69,000 पदों को नहीं भरने और 37,339 ऐसे पदों को रिक्त रखने को कहा था जिस पर अभी शिक्षा मित्र काम कर रहे हैं। शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि उसने 21 मई को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि सहायक शिक्षक पद पर काम कर रहे सभी शिक्षा मित्रों की सेवा में व्यवधान नहीं डाला जाएगा। सहायक शिक्षकों की भर्ती करने वाले उत्तर प्रदेश परीक्षा नियामक प्राधिकरण ने इससे पहले अदालत में तीन अपीलें दाखिल की थीं और चयन पर तीन जून के अंतरिम स्थगन को चुनौती दी थी।
प्राधिकरण ने दलील दी थी कि केवल 31 अभ्यर्थियों की याचिकाओं पर जारी एकल पीठ का आदेश कानूनी तौर पर विचारणीय नहीं है जिसमें सफल उम्मीदवारों को सुनवाई में पक्ष रखने का कोई अवसर नहीं दिया गया। न्यायमूर्ति आलोक माथुर की एकल पीठ ने आदेश पारित किया था । अदालत ने पाया था कि आठ मई को जो परीक्षा परिणाम घोषित किया गया था उसमें कुछ प्रश्नों एवं उनके उत्तर में भ्रम की स्थिति थी लिहाजा न्याय हित में अदालत ने सही हल जानने के लिए मामला यूजीसी को भेजने का आदेश दिया था।
असफल अभ्यर्थियों ने एकल पीठ से प्राधिकरण को यह निर्देश देने की गुहार लगाई थी कि उन्हें उन कई प्रश्नों के लिए सामान्य अंक दिये जाएं जिन्हें अदालत ने भी बाद में भ्रामक बताया है ताकि उन्हें कट-ऑफ अंक मिल सकें। प्राधिकरण की ओर से राज्य के महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने दलील दी थी कि अदालत को याचिकाओं पर विचार करने का कोई अधिकार नहीं है।