बेसिक शिक्षा परिषद के कार्य में कमिश्नर या जिला प्रशासन को हस्तक्षेप करने का अधिकार न होने के हाईकोर्ट के आदेश से सहायता प्राप्त पूर्व माध्यमिक स्कूलों में नियुक्ति को लेकर चल रहे विवाद पर विराम लगेगा। पिछली सरकार में एडेड जूनियर हाईस्कूलों में शिक्षकों एवं प्रधानाध्यापकों के दो हजार से अधिक पदों पर भर्ती शुरू हुई थी।
स्कूल प्रबंधकों ने बेसिक शिक्षा अधिकारियों से अनुमोदन प्राप्त कर आरटीई मानकों के अनुरूप नियुक्तियां कीं। प्रयागराज समेत कई जिलों में नियुक्ति अनियमितता को लेकर डीएम व कमिश्नर समेत अन्य प्रशासनिक अफसरों से शिकायतें भी हुई। प्रशासनिक अधिकारियों ने इन शिकायतों की जांच अपने स्तर से कराई और कुछ जगह जांचें चल रही हैं।
हाईकोर्ट की प्रयागराज व लखनऊ पीठ में ऐसे ही प्रकरणों में कई याचिकाएं विचाराधीन हैं। लेकिन हाईकोर्ट के गुरुवार के फैसले से प्रशासनिक स्तर से हो रही जांचों का औचित्य नहीं रह जाएगा। आजमगढ़ के मामले में हाईकोर्ट ने माना है कि परिषद के कार्य में सरकार को सीमित अधिकार दिया गया है। इसलिए नियुक्ति में अनियमितता के मामले की कमिश्नर को जांच का आदेश देने का अधिकार नहीं है।
बेसिक शिक्षा परिषद के लंबे समय तक सचिव रहे एक वरिष्ठ अधिकारी का मानना है कि बेसिक शिक्षा अधिनियम 1972 के आधार पर गठित बेसिक शिक्षा परिषद स्वायत्तशासी संस्था है। यह निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है। राज्य सरकार समय-समय पर मार्गदर्शन या निर्देश दे सकती है। बेसिक शिक्षा परिषद प्रदेशभर के 1.59 लाख प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्कूलों के अलावा 3049 सहायता प्राप्त पूर्व माध्यमिक स्कूलों को भी नियंत्रित करता है।
गौरतलब है कि श्री दुर्गा पूर्व माध्यमिक बालिका जामिन व कई अन्य विद्यालयों की प्रबंध समितियों व अध्यापक, प्रधानाध्यापकों की याचिका को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने गुरुवार को कमिश्नर आजमगढ़ के जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा की गई नियुक्तियों की चार सदस्यीय कमेटी से जांच कराने के आदेश को अवैध व क्षेत्राधिकार से बाहर करार दिया था।